शिवगढ़ प्रेस : दुर्ग :- दुर्ग जिला अंतर्गत गांव-गांव गुरू सतनाम रावटी गुरुद्वारा लगा रहे । भंडारपुरी धाम से आए धर्मगुरू नसी साहेब ने थनौद में धर्मसभा को संबोधित करते हुए गुरूवाणी में धर्मांतरण को चिंता का विषय बताया जो सतनाम धर्म-संस्कृति के साथ संवैधानिक आरक्षण व्यवस्था को सर्वाधिक नुकसान पहुंचा रही है। शासकीय योजनाओं और सेवाओं में अनुसूचित जाति वर्ग के आरक्षण का लाभ वे लोग ले रहे है जो मिशनरी परंपराओं का अनुसरण कर ईसाई धर्म को मान रहे है,जोकि पूर्णतः असंवैधानिक है। धर्मगुरू ने बताया की गुरू सतनाम रावटी के माध्यम से वे गांव गांव जाकर कर रहे धर्मांतरित लोगों को चिन्हांकित,उनसे किया जाएगा रोटी बेटी का संबंध समाप्त और समाज से बहिष्कृत। रावटी समापन के बाद धर्मगुरू प्रदेश के मान. राज्यपाल व मुख्यमंत्री से भेंट कर धर्मांतरित अनुसूचित जाति वर्ग के लोगों पर संवैधानिक व्यवस्था के तहत कार्यवाही करते हुए उन्हें शासकीय सेवाओं और योजनाओं में आरक्षण का लाभ नहीं दिए जाने के लिए ज्ञापन सौपेंगे।
आसान भाषा में समझिए आर्टिकल-341 है क्या?
संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 यह निर्धारित करता है कि हिंदू धर्म, सिख धर्म या बौद्ध धर्म से अलग धर्म को मानने वाले किसी भी व्यक्ति को अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जा सकता है। मूल आदेश में पहले केवल हिंदुओं को वर्गीकृत किया गया था, लेकिन बाद में सिखों और बौद्धों को भी इसमें शामिल किया गया और आदेश को संशोधित किया गया। 1990 में सरकार ने आदेश को संशोधित कर कहा, “कोई भी व्यक्ति जो हिंदू, सिख या बौद्ध धर्म से अलग धर्म को मानता है, उसको इसका अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जाएगा।”
भारतीय संविधान का अनुच्छेद-341 (Article- 341) अनुसूचित जाति (SC) के बारे में है। इस आर्टिकल में दो क्लॉज हैं। पहले क्लॉज में बताया गया है कि भारत का राष्ट्रपति किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के किसी जाति को पब्लिक नोटिफिकेशन के जरिए एससी में शामिल कर सकता है। राज्य के मामले में राष्ट्रपति को वहां के राज्यपाल के साथ राय-मशविरा करने की जरूरत होती है। दूसरे क्लॉज में बताया गया है कि भारतीय संसद राष्ट्रपति के पब्लिक नोटिस द्वारा अनुसूचित जाति में शामिल की गई किसी जाति को इस सूची से निकाल सकता है और साथ ही शामिल भी कर सकता है।
धर्मांतरण संवैधानिक व पारंपरिक संस्कृति के अनुकूल ही नहीं है। असल में अनुसूचित जाति वर्ग के लिए विशेषाधिकार संविधान में उनके पिछड़ेपन और समग्र सशक्तिकरण के लिए सुनिश्चित किये गए है। धार्मिक आधार पर संविधान किसी तरह के आरक्षण की व्यवस्था को स्पष्टता निषिद्ध करता है। डिलिस्टिंग का मामला इसी संवैधानिक प्रावधान की बुनियाद पर खड़ा है। जिसे अनुच्छेद 341 में परिभाषित किया गया है। धर्मांतरण ने बिगाड़ दिया संविधान का पवित्र उद्देश्य देश में मिशनरीज बेस्ड कन्वर्जन अभियान ने अनुसूचित जाति वर्ग के लाखों लोगों को अनुसूचित जाति से ईसाई बना दिया है। उनके नाम, उपनाम और सामाजिक संस्कृति से विमुख आचरण से स्पष्ट है कि वे अपनी अनुसूचित जाति पहचान को विलोपित कर चुके है। यानी वे मूलतः अनुसूचित जाति से ईसाई या मुस्लिम धर्म मे स्थानांतरित हो चुके है।भारतीय संविधान धार्मिक आधार पर किसी भी विशेषाधिकार को निषिद्ध करता है, इसलिए जो लोग मूल धर्म छोड़ चुके है उन्हें अनुसूचित जाति का सरंक्षण असंवैधानिक ही है।
आरक्षण का लाभ धर्मांतरित गैंग के पास
छतीसगढ़ राज्य में अनुसूचित जाति वर्ग के हिस्से का फायदा धर्मांतरण के जरिये ईसाई या मुस्लिम हो चुके लोग उठा रहे है। गुरू सतनाम रावटी में लोगों ने धर्मगुरू को बताया की हमारे समाज में मिशनरीज का दखल इतना अधिक आ चुका है कि परम्पराओं के सामने भी खतरा महसूस हो रहा है। कई गांव में अस्सी फीसद कन्वर्जन हो चुका है ।
कार्यक्रम के संचालक सतनामी समाज के अध्यक्ष भारत लाल बंजारे व किशोर कुमार भारद्वाज ने बताया की गुरू सतनाम रावटी का अगला पड़ाव मानसून को देखते हुए मौसम साफ होने पर लगेगा जिसकी पूर्व सूचना सार्वजनिक रूप से सभी को दी जावेगी।
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