तब भाप से चलती थी दुर्ग को राइस मिलें
शिवगढ़ प्रेस : दुर्ग : दुर्ग :- अंग्रेजों की दासता से भारत को आजाद कराने महात्मा गांधी द्वारा 1942 में शुरू किए गए भारत छोड़ो आंदोलन की अनुगूंज दुर्ग में भी सुनाई दी। अंग्रेजों भारत छोड़ो और करो या मरो के आजादी के दीवानों के नारों से दुर्ग ही नहीं बल्कि अंचल का चप्पा-चप्पा गूंज उठा। यहां भी क्रांतिकारियों के जुलूस निकले और सरकारी दफ्तरों में तालाबंदी हुई। आजादी के प्रति लोगों में जोश देख वासुदेव चंद्राकर भी आंदोलन में कूद पड़े। क्रांतिकारियों के संग वे भी भारत माता की जयकार करते जुलूस में शामिल हुए उन्हें जेल नहीं भेजा गया । रत्नाकर झा, विश्वनाथ यादव तामस्कर, मोहन लाल बाकलीवाल, केशव गुमास्ता, नरसिंह अग्रवाल, त्रिलोचन साहू, खिलावन बघेल, विष्णु प्रसाद चौबे आदि अनेक स्वतंत्रता सेनानियों ने यहां आदोलन की मशाल जलाई। इस समय दाऊजी की उम्र तेरह चौदह वर्ष थी। आंदोलन के एक वर्ष बाद ही उनकी ममतामई मां का देहांत हो गया गया। उनकी मां सतवंतिन बाई कैंसर से पीड़ित थी । उनके इलाज के लिए बड़े-बड़े डाक्टर बुलाए गए, पर उन्हें बचाया नहीं जा सका। 1943 में उनका निधन हो गया । यह समय किशोर वासुदेव चंद्राकर के लिए बेहद असहनीय था। यह विपरीत परिस्थिति मां के बिछड़ने का दर्द उनके लिए असहनीय था क्योंकि सबसे ज्यादा स्नेह वे उन्हें ही करती थीं। उस समय वे पंद्रह वर्ष के थे। उन दिनों श्री चंद्राकर के पिता रामदयाल चंद्राकर दुर्ग आ चुके थे। मिल पारा में उनका मकान था। यहां उनकी छत्तीसगढ़ किसान राईस मिल में ही निवास था। इस मिल को अब सीता राईस मिल के नाम से जाना जाता है। उन दिनों राईस मिल भाप से चला करती थी। इसके लिए क्रूड आयल इस्तेमाल किया जाता था। हर्रा और बनाई जाती थी तेल निकालने के लिए तीन मशीने थीं। मिल में सबसे ज्यादा अलसी तेल निकाला जाता था। इसकी खपत महाराष्ट्र में होती थी। भारत छोड़ो आंदोलन के बाद अंग्रेजों का देश में टिकना मुश्किल हो गया। पंद्रह अगस्त 1947 को आजादी के सूरज को इस धरा पर उतरते देख दाऊजी भावविह्वल हो गए थे । उस दिन तो दुर्ग में दीवाली जैसा नजारा था । दुर्ग नगर में पंद्रह अगस्त को राष्ट्रीय ध्वज स्वतंत्रता संग्राम सेनानी विश्वनाथ यादव तामस्कर ने फहराया था। इस अवसर पर दाऊजी समेत मोहन लाल बाकलीवाल, केश गुमास्तो. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संस्थापक डा. वामन राव पाटकर सहित सैकड़ों लोग उपस्थित थे।
अंग्रेजों की दासता से भारत को आजाद कराने महात्मा गांधी द्वारा 1942 में शुरू किए गए भारत छोड़ो आंदोलन की अनुगूंज दुर्ग में भी सुनाई दी। अंग्रेजों भारत छोड़ो और करो या मरो के आजादी के दीवानों के नारों से दुर्ग ही नहीं बल्कि अंचल का चप्पा-चप्पा गूंज उठा। यहां भी क्रांतिकारियों के जुलूस निकले और सरकारी दफ्तरों में तालाबंदी हुई। आजादी के प्रति लोगों में जोश देख वासुदेव चंद्राकर भी आंदोलन में कूद पड़े। क्रांतिकारियों के संग वे भी भारत माता की जयकार करते जुलूस में शामिल हुए उन्हें जेल नहीं भेजा गया । रत्नाकर झा, विश्वनाथ यादव तामस्कर, मोहन लाल बाकलीवाल, केशव गुमास्ता, नरसिंह अग्रवाल, त्रिलोचन साहू, खिलावन बघेल, विष्णु प्रसाद चौबे आदि अनेक स्वतंत्रता सेनानियों ने यहां आदोलन की मशाल जलाई। इस समय दाऊजी की उम्र तेरह चौदह वर्ष थी। आंदोलन के एक वर्ष बाद ही उनकी ममतामई मां का देहांत हो गया गया। उनकी मां सतवंतिन बाई कैंसर से पीड़ित थी । उनके इलाज के लिए बड़े-बड़े डाक्टर बुलाए गए, पर उन्हें बचाया नहीं जा सका। 1943 में उनका निधन हो गया । यह समय किशोर वासुदेव चंद्राकर के लिए बेहद असहनीय था। यह विपरीत परिस्थिति मां के बिछड़ने का दर्द उनके लिए असहनीय था क्योंकि सबसे ज्यादा स्नेह वे उन्हें ही करती थीं। उस समय वे पंद्रह वर्ष के थे। उन दिनों श्री चंद्राकर के पिता रामदयाल चंद्राकर दुर्ग आ चुके थे। मिल पारा में उनका मकान था। यहां उनकी छत्तीसगढ़ किसान राईस मिल में ही निवास था। इस मिल को अब सीता राईस मिल के नाम से जाना जाता है। उन दिनों राईस मिल भाप से चला करती थी। इसके लिए क्रूड आयल इस्तेमाल किया जाता था। हर्रा और बनाई जाती थी तेल निकालने के लिए तीन मशीने थीं। मिल में सबसे ज्यादा अलसी तेल निकाला जाता था। इसकी खपत महाराष्ट्र में होती थी। भारत छोड़ो आंदोलन के बाद अंग्रेजों का देश में टिकना मुश्किल हो गया। पंद्रह अगस्त 1947 को आजादी के सूरज को इस धरा पर उतरते देख दाऊजी भावविह्वल हो गए थे । उस दिन तो दुर्ग में दीवाली जैसा नजारा था । दुर्ग नगर में पंद्रह अगस्त को राष्ट्रीय ध्वज स्वतंत्रता संग्राम सेनानी विश्वनाथ यादव तामस्कर ने फहराया था। इस अवसर पर दाऊजी समेत मोहन लाल बाकलीवाल, केश गुमास्तो. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संस्थापक डा. वामन राव पाटकर सहित सैकड़ों लोग उपस्थित थे।
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