डंडा पंचरंगा और कबड्डी खेलते गांव में बीता बचपन
शिवगढ़ प्रेस : दुर्ग : दुर्ग :- बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो संपन्नता की छाया में परवरिश पाने के बाद भी विपन्नता की धूप का एहसास नहीं खोते। बुजुर्ग कांग्रेस नेता दाऊ स्व. वासुदेव चंद्राकर का सरोकार एक संपन्न परिवार से होने के बाद भी उन्होंने अपने भीतर के एक आम आदमी की संवेदना व सहजता को चुकने नहीं दिया। अपने पैतृक ग्राम में परिवार के बीच उनका बचपन खुशनुमा माहौल में बीता ।
दाऊ वासुदेव चंद्राकर का बचपन भी दूसरे बच्चों की तरह खेलते और शरारत करते बीता। उनका जन्म 26 मार्च 1928 को दुर्ग जिला मुख्यालय से 20 किमी दूर बसे ग्राम रिसामा में हुआ था। उनके पिता राम दयाल चंद्राकर एक बड़े कृषक थे। उनके जीवन पर पिता के साथ मां सतवंतीन बाई का गहरा प्रभाव पड़ा। सात भाई बहनों में वासुदेव चंद्राकर तीसरे नंबर के थे। उनके दो बड़े भाई महासिंह चंद्राकर, रामसिंह व छोटे भाई गेंदसिंह , सभी का निधन हो चुका है । सुहागा बाई, देवकी बाई, सुभद्रा बाई तीनों बहन भी अब इस दुनिया में नहीं है। भरे पूरे और संपन्न परिवार में जन्में श्री चंद्राकर सभी के मयारू थे। उनकी चौथी जमात तक की तालीम ग्राम मतवारी के निजी स्कूल में हुई थी। यह स्कूल श्री चंद्राकर के पिता राम दयाल चंद्राकर ने ही खुलवाया था बचपन से वासुदेव चंद्राकर पढ़ाई में तेज थे। उनका बचपन मतवारी में बीता। चौथी कक्षा तक की पढ़ाई उन्होंने यहीं पूरी की । गणित में भी काफी होशियार थे और पांचवी के भी सवाल चैलेंज के साथ हल कर लेते थे। इतिहास और भूगोल भी उनके रूचिकर विषय थे । पढ़ाई मे तेज होने से वे स्कूल के बोधीराम साहू और शर्मा गुरूजी के चहेते थे। शर्मा गुरूजी अर्जुदा के थे उस समय मतवारी की आबादी बमुश्किल पांच सौ रही होगी रिसामा भी छोटा सा गांव था और दुर्ग तो तब एक कस्बानुमा शहर था। श्री चंद्राकर पढ़ाई में तो तेज थे ही खेलकूद व शरारत में भी वे आगे रहते थे। गांव के तालाब में पेड़ पर से कूदकर नहाने व दोस्तों के साथ तैरने में उन्हें खासा मजा आता था। डंडा पंचरंगा, मेनपाट और कबड्डी उनके पसंदीदा खेल थे। अपने गांव से पहले पहल वासुदेव चंद्राकर पढ़ाई के सिलसिले में ही आए थे। उनके पिता रामदयाल ने उन्हें पांचवी का दाखिल कराने का निर्णय लिया। वर्ष 1939 में बहुद्देशीय उच्चतर माध्यमिक शाला में उनका पांचवी कक्षा में दाखिला करवाया गया। दुर्ग में जब बोर्डिंग में जगह नहीं मिली तो वासुदेव चंद्राकर को उनके पिता ने अपने मित्र क्रांतिकारी वासुदेव देशमुख के निवास पर रहकर उनके पढ़ने की व्यवस्था करवाई। बताते हैं कि उन दिनों वासुदेव देशमुख का मकान तहसील कार्यालय के बग़ल में और बोर्डिंग डीईओ ऑफिस में था।
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