घर पहुंचने पर पता चला कि अपने पिताजी से अब कभी नहीं मिल पाएगी
शिवगढ़ प्रेस : दुर्ग : दुर्ग :- कम संसाधनों के बीच अपनी कड़ी मेहनत और लगन से गांव की एक बेटी देश की रक्षा के लिए नौसेना में अग्निविर चयनित हो जाती है और जब करीब 5 माह की ट्रेनिंग पूरी कर वापस अपने गांव लौटती हैं तब तक उनका नाम छत्तीसगढ़ के इतिहास में नौसेना में पहली महिला अग्निवीर के नाम से दर्ज हो चुका होता है। यह उपलब्धि है , दुर्ग जिले के बोरीगारका गांव की 19 वर्षीय बेटी हिषा बघेल की मजबूत आत्मविश्वास और कड़े संघर्षों के बीच अटल इरादों के साथ आसमां की बुलंदियों को छू लेती है।
हिषा की मां सती बघेल बताती है कि हिषा बचपन से ही बहुत प्रतिभाशाली और आत्मविश्वासी थी। अपनी पढ़ाई को जारी रखने उन्होने स्वयं भी काफी संघर्ष किया था। गांव में एक ऐसी बेटी थी जो सुबह 4 बजे उठकर अपने फिटनेस के लिए बहुत मेहनत करती थीं। गांव के लोग भी इस बात को लेकर आश्चर्य चकित हो जाते थे और गांव की अन्य बेटियां हिषा को देखकर प्रेरित हो उठती थी। कॉलेज की अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए वह छोटे छोटे बच्चों को घर में ट्यूशन पढ़ाकर उस फीस से अपनी फीस भर्ती थीं। उनके पिता का सपना था कि बेटी के अग्निवीर बनने के बाद गांव आयेगी तो पूरा परिवार मिलकर भव्य स्वागत करेंगे जिसे हिषा के भाई कोमल ने पूरा किया।
भारतीय सेना एस एस आर की महिला बैच में देश भर के 560 पदों में केवल 200 पद में से एक चयनीत हिषा कल जब अपनी ट्रेनिग पूरी कर अपने गांव आती है तो हिषा के स्वागत के लिए उनका भाई कोमल 1 माह पुर्व दिवंगत पिता के सपनो को पूरा करने भव्य स्वागत के लिए रेलवे स्टेशन से अपने गांव लेकर आता जहा बेटी को अग्निवीर के रूप में देखने के लिए ग्रामीणो का हुजूम उमड़ पड़ा। हिषा के घर आने पर पता चला कि उनकी ट्रेनिग के दौरान है उनके पिता गुजर चुके थे जिसे ट्रैनिंग में कोई बाधा नहीं आए इसलिए बताया नही गया। घर का पूरा माहौल गमगीन हो जाता है कि बेटी के स्वागत में खुशियां मनाएं या पिता के न होने का गम। महिला सशक्तिकरण और बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के उद्वेश्य में हिषा की यह उपलब्धी कई बेटियों के लिए एक मार्गदर्शक मिसाल कायम करेगी।
हिषा बघेल , अग्निवीर सैनिक
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