Chanakya Of Durg Politics - Sri Vasudev ChandrakarChhattisgarh

हैदराबाद विलय के ऐतिहासिक क्षण के साक्षी रहे दाऊजी – स्व दाऊ वासुदेव चंद्राकर जी – जीवन वृतांत – 08

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शिवगढ़ प्रेस : दुर्ग : दुर्ग :- “”दाऊ जी”” वासुदेव चंद्राकर का आजादी के बाद लाल सेना के फौजी के रूप में हैदराबाद रियासत को निजाम के कब्जे से आजाद कराना एक यादगार तजुर्बा था । सरदार वल्लभ भाई पटेल की अगुवाई में छेड़ा गया ऐतिहासिक सैनिक अभियान को जानकर आप रोमांचित हो उठेंगे।

भारत छोड़ो आंदोलन के समाप्त होने के बाद श्री चंद्राकर अंग्रेजी फौज के डर से मनगटा डोंगरी में छिपे प्रसिद्ध कांतिकारी मगन लाल बागड़ी से मिलकर उनकी लाल सेना में भर्ती हुए थे। मगन लाल बागड़ी ने भूमिगत रहते हुए लाल सेना का गठन किया था, जिसमें दस हजार युवक थे। इसमें शामिल होने वाले वासुदेव चंद्राकर दुर्ग से अकेले थे। वर्ष 1947 में देश के आजाद होने के बाद जब सरदार वल्लभ भाई पटेल ने भारत की सभी रियासतों और राजे रजवाड़ों का विलय करवाया तो हैदराबाद के निजाम ने अपने राज्य को विलय करने से इंकार कर दिया और अपनी रियासत की स्वायत्तता बनाए रखने पर अडिग रहा। तब केंद्र सरकार की ओर से वल्लभ भाई पटेल ने निजाम के सामने यह शर्त रखी कि हैदराबाद में कानून व्यवस्था संभालना भी उन्हीं की जिम्मेदारी होगी। इसमें असफल होने पर केंद्र सरकार दखलंदाजी कर स्थिति के अनुरूप अपने अधिकारों का प्रयोग करेगी। 1948 में कासिम रिजवी, निजाम के बढ़े होने का फायदा उठाते हुए खुद निजाम की गद्दी पर जा बैठा और जनता पर अत्याचार तेज कर दिए।

उसने अपनी व रियासत की सुरक्षा के लिए एक रजाकार सेना का भी गठन किया । स्थिति अनियंत्रित होते देखकर और जनता को रिजवी व रजाकार सेना के अत्याचार से मुक्त कराने की जिम्मेदारी सरदार पटेल ने लाल सेना को सौंपी । अरुणा आसफ अली और मदन लाल बागड़ी की अगुवाई में लाल सेना ने रजाकार सेना से संघर्ष करने हैदराबाद कुच किया । इस बड़े व साहसिक सैनिक अभियान में शामिल होने वाले वासुदेव चंद्राकर लाल सेना के दुर्ग से एकमात्र फौजी थे । इस समय वह मात्र 20 वर्ष के थे । मध्य प्रदेश को तब सीपी बरार के नाम से जाना जाता था और रविशंकर शुक्ला मुख्यमंत्री थे।

हैदराबाद को विलय करवाने के लिए कासिम रिजवी की रजाकार सेना और केंद्र सरकार की फौज में शामिल लाल सेना के बीच बारह दिन तक खूनी संघर्ष हुआ। लाल सेना कड़ा मुकाबला कर रजाकार सेना को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया कासिम रिजवी जहाज से अफगानिस्तान भाग गया। तब सरदार पटेल ने हैदराबाद को भारत में विलय कर लिया। यह उनकी सुनियोजित कूटनीतिक रणनीति थी। हैदराबाद से लौटने के बाद श्री चंद्राकर को मगन लाल बागड़ी ने दुर्ग में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का कार्यालय खोलकर यहां पार्टी को खड़ा करने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी। इस तरह “दाऊ जी” के राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुईं । श्री चंद्राकर बताते थे कि मगन लाल बागड़ी ने उनसे 1948 में यहां पार्टी का दफ्तर खुलवाया , कार्यालय पहले छीतरमल धर्मशाला, फिर पोलसाय पारा में खोला गया।

वे इस पार्टी के महामंत्री थे। सिंग वर्मा उनके सहयोगी थे। कुछ समय बाद इस पार्टी में जमुना प्रसाद कसार, लाल जी चौहान, मोतीलाल वर्मा , तुलाराम नायक, त्रिलोचन साहू व खिलावन बघेल आदि अनेक लोग जुड़े। राष्ट्रीय स्तर पर इस पाटी में अरूण आसफ अली, मगन लाल बागड़ी, जय प्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया, अशोक मेहता, नरेंद्र देव, कमला चटोपाध्याय, हर्षद पटवर्धन आदि बड़े नेता शामिल थे। इस समय में दुर्ग में कांग्रेस में विश्वनाथ यादव तामस्कर जिलाध्यक्ष समेत केशव गुमास्ता, रत्नाकर झा, विष्णु प्रसाद चौबे, चुन्नीलाल वर्मा, घनश्याम गुप्ता आदि अनेक लोग थे।

शेष अगले संस्करण में

Vaibhav Chandrakar

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