शिवगढ़ प्रेस : दुर्ग : दुर्ग :- अक्टूबर, 1960 में रायपुर में हुए अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के सम्मेलन के अंतिम दिन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपने संबोधन में राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर बात करते हुए हल्के-फुल्के अंदाज में पंडित नेहरू ने एक ऐसे मुद्दे को छेड़ दिया था, जो छत्तीसगढ़ के लोगों की भावनाओं से जुड़ा हुआ था। नेहरू ने कहा, ‘”ज्यादा चावल (भात) खाने से सुस्ती और आलस्य आता है। इससे आदमी अकर्मण्य हो जाता है! मैं नहीं जानता, कि क्या इसका दिमाग पर भी कोई असर होता है !””
नेहरू ने जाने-अनजाने में चावल के विषय में यह बात ऐसी जगह कही थी, जिसे धान का कटोरा के नाम से जाता है। धान छत्तीसगढ़ की मुख्य खेती और फसल है और भात यहां का मुख्य भोजन । धान यहां के लोगों के जीवन और कर्मण्यता से जुड़ा हुआ है। ना सिर्फ यह मुद्दा जीवन से जुड़ा है बल्कि छत्तीसगढ़ की राजनिति में दो रुपए किलो चावल और 30हजार करोड़ के नॉन घोटाले में प्रदेश के पुर्व मुख्यमंत्री और उनके शासन-प्रशासन का कुनबा भी काफी प्रभावित हुआ है।
वास्तव में कांग्रेस के इस सम्मेलन से कुछ वर्ष पूर्व 1956 में किए गए राज्यों के पुनर्गठन का असर छत्तीसगढ़ पर भी पड़ा था। दरअसल पुराने मध्य प्रदेश का विदर्भ का हिस्सा महाराष्ट्र में चला गया था और छत्तीसगढ़ को नए मध्य प्रदेश से जोड़ दिया गया था। नए राज्यों के गठन के साथ ही छत्तीसगढ़ और विदर्भ के बीच धान की आवाजाही पर भी रोक लगा दी गई थी। इससे छत्तीसगढ़ के किसान विदर्भ के हिस्से में जाकर अपना धान नहीं बेच सकते थे। इससे पहले तक छत्तीसगढ़ के किसान बेरोकटोक गोंदिया, भंडारा और नागपुर तक जाकर अपना धान बेचा करते थे।
धान की आवाजाही पर रोक से किसानों की नाराजगी बढ़ती जा रही थी। किसान आंदोलन करने लगे। उस समय के विपक्ष के नेताओं के लिए भी यह एक बड़ा मुद्दा बन गया। तय किया गया कि किसान बैलगाड़ियों में धान भरकर जुलूस की शक्ल में महाराष्ट्र की सीमा में प्रवेश करेंगे और धान की बिक्री पर लगा प्रतिबंध तोड़ेंगे ।”
अविभाजित दुर्ग जिला इस आंदोलन का केंद्र था। इस आंदोलन के सूत्रधार बने थे किसानों के हितैषी दाऊ वासुदेव चंद्राकर , वह पुराने गांधीवादी समाजवादी थे। राजनीतिक जीवन की शुरुआत उन्होंने कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी से की थी। वासुदेव चंद्राकर ने इसके लिए छत्तीसगढ़ के विभिन्न हिस्सों समाजवादी नेताओं के साथ ही किसानों से मुलाकात की और उन्हें आंदोलन के लिए राजी किया था। चूंकि यह दो राज्यों से जुड़ा मामला था. इसलिए प्रशासन भी सतर्क था। इस आंदोलन में लाल श्याम शाह महाराज की भी महत्वपूर्ण भूमिका थी। तय किया गया था कि किसान बैलगाड़ियों में धान भरकर लाल श्याम शाह की निगरानी में मोहला में इकट्ठा हों और फिर वहां से महाराष्ट्र की सीमा में प्रवेश करें। यहां आने वाले किसानों के ठहरने और भोजन की पूरी व्यवस्था लाल श्याम शाह कर रहे थे। रात में किसानों के मनोरंजन के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम थे। बैलगाड़ियों से किसानों के जत्थे मोहला के डूमरटोला गांव से महाराष्ट्र की सीमा में जाकर प्रवेश करते थे ।
इस बीच, प्रशासन ने आंदोलनकारी किसानों की गिरफ्तारी भी शुरू कर दी थी। उन्हें मोहला-पानाबरस की ओर जाने से रोका जाने लगा । अनेक किसान नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। किसानों के इस आंदोलन की गूंज नए मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल तक भी पहुंच चुकी थी। उस समय रविशंकर शुक्ल के निधन के बाद कैलाशनाथ काटजू मुख्यमंत्री बन चुके थे। किसानों के दबाव में आखिरकार प्रदेश सरकार को धान की दूसरे राज्यों में लगी आवाजाही पर लगी रोक हटाने का फैसला करना पड़ा।
नए मध्य प्रदेश के गठन के बाद छत्तीसगढ़ के किसानों का यह पहला बड़ा आंदोलन था, जिसने नए राज्य में उनकी मुश्किलों को रेखांकित किया था।
शेष अगले संस्मरण में
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