शिवगढ़ प्रेस : दुर्ग : दुर्ग :- स्व. दाऊ वासुदेव चंद्राकर में युवावस्था से ही नेतृत्व और सांगठनिक क्षमता के गुण थे। उन्नीस बीस वर्ष की उम्र से ही उन्हें प्रसिद्ध समाजवादी नेता जय प्रकाश नारायण और मगन लाल बागड़ी जैसे बड़े नेताओं का सानिध्य मिला। इन्हीं से उन्हें किसानों, दलितों व शोषितों के हितों के लिए राजीतिक क्षेत्र में संघर्ष करने की प्रेरणा मिली। दुर्ग में हुए प्रांतीय किसान सम्मेलन का श्रेय दाऊजी को जाता हैं । इसकी तैयारी के लिए साइकल से यात्रा के दौरान घनघोर जंगल में उनकी शेर से मुठभेड़ हुई थी। यह घटना भी बड़ी रोमांचक थी।
वर्ष 1950 में कांग्रेस के जयपुर अधिवेशन में सरदार वल्लभ भाई पटेल ने कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के साथ कांग्रेस शब्द जुड़े होने पर आपत्ति दर्ज कर स्वतंत्रता के बाद इस पार्टी की उपयोगिता समाप्त हो जाने की बात कही और पार्टी को कांग्रेस में विलय करने या इसके नेताओं को नई पार्टी गठित करने का प्रस्ताव रखा। तब कांग्रेस सोशलिस्टपार्टी का नाम सोशलिस्ट पार्टी रखा गया। इस पार्टी के नेता जयप्रकाश नारायण के वासुदेव चंद्राकर अनुयायी थे। इस पार्टी के झंडे का रंग लाल होने से कार्यकर्ता लाल टोपी पहनते थे। पार्टी महामंत्री के रूप में वासुदेव चंद्राकर ने मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, दिल्ली आदि देश के अनेक शहरों में हुए सोशलिस्ट पार्टी के सम्मेलनों में दुर्ग का प्रतिनिधित्व किया। इस दौरान उन्हें जयप्रकाश नारायण, अरुणा आसफ अली, राम मनोहर लोहिया जैसे बड़े नेताओं का सानिध्य प्राप्त हुआ और उनसे सेवापरक राजनीति के गुर सीखने का अवसर मिला। इस दौरान दाऊजी पार्टी के अधिवेशनों में जाने वे महज एक जोड़ी कपड़े रखकर निकल जाते थे। जयप्रकाश जी की पार्टी से जुड़े होने से उन्हें कभी ट्रेन या बस में टिकट कटाने की जरूरत नहीं पड़ी। उल्टे टिकट कलेक्टर उन्हें चाय पिलाते व खाना खिलाते थे। दिसंबर 1950 में दुर्ग में प्रांतीय किसान सम्मेलन करवाने में युवा वासुदेव चंद्राकर ने अपनी जिस संगठन क्षमता का परिचय दिया उससे वे बड़े नेताओं की नजर में चढ़ गए। सम्मेलन के लिए उन्होंने साइकिल से ही अविभाजित दुर्ग राजनांदगांव के गांव-गांव , कोने – कोने घूमकर किसानों व पार्टी नेताओं को संगठित किया। सम्मेलन के लिए रामशरण दास बाबा को आमंत्रित उनके गांव चचेड़ी जाते हुए जंगल में शेर से हुई मुठभेड़ की घटना दाऊजी के लिए सदैव स्मरणीय रहा । इस वाकया के बारे में जानकार बताते हैं कि दाऊजी सहसपुर लोहारा से रामशरण दास बाबा को आमंत्रित करने चचेड़ी गांव जा रहे थे। दिसंबर का महीना था और कड़कड़ाती ठंड के कारण उनका व उनके साथी बिसरू राम यादव का बुरा हाल था। मारे ठंड के साइकिल भी ठीक से नहीं चल पा रही थी। घनघोर अंधेरा और जंगली रास्ता होने के कारण वे जल्द चचेड़ी पहुंच जाना चाहते थे। अभी वे वहां से गुजर ही रहे थे कि उन्हें सामने बैठा एक खूंखार शेरु दिखाई दिया। उनकी ठिठुरन दोगुनी हो गई। डर के मारे उनका बुरा हाल था। न भागने की हिम्मत थीं न शेर से भिड़ने का साहस अचानक बिसरूराम ने एक तरकीब सुझाई। उन दिनों साइकिल में डायनेमो लगे होते थे। हमने इसकी लाइट का फोकस शेर पर डालने सोचा। यह फार्मूला उसे भगाने में कामयाब हो सकता था। जैसे ही फोकस शेर पर पड़ा वह डरकर भाग गया और हमारी जान में जान आई। यहां से श्री चंद्राकर व बिसरू राम ने निकटस्थ एक गांव में एक कोतवाल के घर में रात में शरण ली और शेर के भय से अंगीठी जलाकर सुबह होने का इंतजार करते रहे। सुबह उन्होंने चचेड़ी में महंत रामशरण दास बाबा को आमंत्रण देकर उन्हें सारा वृत्तांत सुनाया।
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