शिवगढ़ प्रेस : दुर्ग : दुर्ग :- स्व वासुदेव चंद्राकर ” दाऊजी” को अपने जीवन काल में इस बात का बेहद अफसोस था कि उन्हें बोर्डिंग में जगह नहीं मिलने से वे ज्यादा पढ़ लिख नहीं सके। लोगों के लिए यह जानना भी दिलचस्प हो सकता है कि दाऊजी अपनी एक सहपाठी लड़की के कारण आजादी की लड़ाई में क्रांतिकारियों के साथ जेल नहीं जा सके। आजादी की जंग की क्रांति के रंग में रंगे श्री चंद्राकर ने इसी दौरान सियासत की दुनिया में पहला कदम रखा था ।
वासुदेव चंद्राकर का अपने गांव मतवारी से दुर्ग आना उनके जीवन को एक महत्वपूर्ण घटना थी, जिसने उनके जीवन की दिशा ही बदल दी। अपने पिता के मित्र वासुदेव देशमुख के घर पर रहकर उन्होंने बहुउद्देशीय उच्चतर माध्यमिक शाला में आठवीं कक्षा तक की शिक्षा पूरी की। यह वह दौर था जब आजादी की जंग के चलते घर-घर में क्रांति के गीत गूंजते थे। वासुदेव देशमुख भी एक क्रांतिकारी थे, सो उनके घर पर देशप्रेम और क्रांतिकारियों की गतिविधियों पर चर्चा होती रहती थी। इसका किशोरवय वासुदेव पर गहरा प्रभाव पड़ा। जब वे आठवीं में पढ़ रहे थे तो उसी दौरान 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हो गया। गांधी चौक, कचहरी समेत सारा दुर्ग अंग्रेजों भारत छोड़ो के नारों से गूंजने लगा। वासुदेव देशमुख को उनके भाईयों व अन्य क्रांतिकारियों के साथ
अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल होने के कारण जेल में डाल दिया। वासुदेव देशमुख के बद्रीनारायण, लक्ष्मण, दामोदर, रामकृष्ण, गोविंद, धर्मराज व जगन्नाथ दस भाई थे। उनके दामाद श्रवण कुमार ढोबड़े भी क्रांतिकारी थे, जो भूमिगत हो गए थे। देशप्रेम की भावना किशोर वासुदेव चंद्राकर में भी हिलोर मारने लगी और वे भी भारत छोड़ो आंदोलन में कूद पड़े। इस समय उनकी उम्र महज चौदह वर्ष थी। आजादी के मतवालों के साथ वे भी भारत माता की जय का नारा लगाते हुए गांधी चौक तक जुलूस के साथ गए। सिपाहियों ने उन्हें गिरफ्तार तो किया, पर रातभर लाकअप में रखकर सुबह छोड़ दिया। जबकि अनेक लोगों को जेल भेज दिया गया। बताते हैं कि भारत छोड़ो आंदोलन में वे तीन बार गांधी चौक तक नारे लगाते हुए गए, पर देश के लिए जेल जाने की तमन्ना उनके मन में ही रह गई। गिरफ्तारी के बाद उन्हें जेल नहीं भेजने की वजह सर्किल इंस्पेक्टर की बेटी थी, जो उनके साथ ही बहुउद्देशीय उच्चतर माध्यमिक शाला में पढ़ती थी। “दाऊजी” सर्किल इंस्पेक्टर भोई की लड़की को वे उनके घर पर गणित पढ़ाते थे, जो पढ़ाई में कमजोर थी। भोई उन्हें पुत्र की तरह मानते थे। उनकी एक ही बेटी थी, जो उनसे गणित पढ़ने के कारण उनका काफी सम्मान करती थी। यही वजह है कि तीन बार गिरफ्तार करने के बाद भी उन्हें जेल नहीं भेजा गया। भोई उन्हें रात भर लाकअप में रखवाकर सुबह आंदोलन वांदोलन छोड़ी पढ़ाई करो कहकर समझाईश देकर छोड़ देते थे। उन दिनों उन्होंने आठवीं पास कर नवमीं कक्षा में दाखिला लिया था। आंदोलन में शामिल होने से वासुदेव चंद्राकर की पढ़ाई बीच में ही छूट गई। आजादी की जंग में शामिल होने का जहाँ उन्हें गर्व था , वहीं इस बात का भी हमेशा अफसोस रहा कि यदि उन्हें दुर्ग में बोर्डिंग में प्रवेश मिल गया होता तो उनकी पढ़ाई नहीं छूटती और वे आगे भी अपनी शिक्षा पूरी कर पाते आंदोलन समाप्त होने के बाद “दाऊजी” 1943 में प्रसिद्ध क्रांतिकारी और आस्तीतिमोर कांड के नायक मगन लाल बागड़ी के संपर्क में आए। मगन लाल बागड़ी थाना जलाने के बाद भूमिगत हो गए थे और कुछ समय तक अपनी ससुराल डोंगरगढ़ में छिपे थे, पर पुलिस को भनक लगते ही मनगटा डोंगरी में जा छिपे। अंग्रेजों से लोहा लेने उन्होंने लाल सेना का गठन किया था और वे अपने कंधे का आपरेशन कर वहां पिस्तौल छिपाकर रखते थे। वासुदेव चंद्राकर लाल सेना में भर्ती होने मनगटा डोंगरी में मगन लाल बागड़ी से मिले, जिन्हें अंग्रेजी सरकार ने पिच्यानवे साल की कैद की सजा सुनाई थी। “दाऊजी” का जोश देख उन्होंने उन्हें लाल सेना में भर्ती कर प्रशिक्षण के लिए सीताबर्डी कार्यालय नागपुर भेजा और आश्वस्त किया कि उनकी आवश्यकता होते ही उन्हें सूचित किया जाएगा। यहां जय नारायण सोनी से उनकी मुलाकात हुई, जो कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के निर्माता थे। इस पार्टी में जय प्रकाश नारायण, अरुणा आसफ अली, नरेंद्र देव, कमला चटोपाध्याय, राममनोहर लोहिया, एस एन जोशी, अशोक मेहता, एनजी गोरे. हर्षद पटवर्धन, दामोदर सेठ, अर्जुन सिंह, जमना प्रसाद शास्त्री जैसे बड़े नेताओं के साथ दुर्ग के त्रिलोचन साहू, उदय राव नायक, मोतीलाल वर्मा, खिलावन बघेल बिसराराम यादव व लाल जी चौहान शामिल थे। 1945 में वासुदेव चंद्राकर को इस पार्टी का महामंत्री बनाकर दुर्ग में पार्टी का कार्यालय खोला गया। “दाऊजी” द्वारा यहां कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का कार्यालय पहले छीतरमल धर्मशाला फिर पोलसाय पारा में खोला गया। इस तरह भारत छोड़ो आंदोलन के क्रांतिमय वातावरण में वासुदेव चंद्राकर ने सियासत की दुनिया में पहला कदम रखा।…
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